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श्रुत लोकोक्तियाँ - २

१ -  जीवन   यापन   की परिस्थितियाँ  ( प्रमुखतः स्त्रियां) बल राज बाप का , उत्तम भर्तार , कान-कोन पुत्र का , निर्मम दामाद ||    भावार्थ: जीवन में जो सबसे सफल और ताकतवर समय वह होता है जब वह अपने पिता की छत्रछाया में होती है (विवाह पूर्व)  |  उत्तम समय वह होता है जब वह अपने भर्तार(पति) के साथ होती है |  थोड़ा अच्छा व् थोड़ा ख़राब समय वह होता है जब वह अपने पुत्र के साथ रहती है  |  और सबसे निर्मम और बुरा समय वह होता है जब उसे अपने दामाद के घर में जीवन यापन करना पड़े ||
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थाल सजा कर किसे पूजने

थाल सजाकर किसे पूजने, चले प्रात ही मतवाले? कहाँ चले तुम राम नाम का, पीताम्बर तन पर डाले? कहाँ चले ले चन्दन अक्षत, बगल दबाए मृगछाला? कहाँ चली यह सजी आरती? कहाँ चली जूही माला? ले मुंजी उपवीत मेखला, कहाँ चले तुम दीवाने? जल से भरा कमण्डल लेकर, किसे चले तुम नहलाने? मौलसिरी का यह गजरा, किसके गज से पावन होगा? रोम कंटकित प्रेम - भरी, इन आँखों में सावन होगा? चले झूमते मस्ती से तुम, क्या अपना पथ आए भूल? कहाँ तुम्हारा दीप जलेगा, कहाँ चढ़ेगा माला - फूल? इधर प्रयाग न गंगासागर, इधर न रामेश्वर काशी। कहाँ किधर है तीर्थ तुम्हारा? कहाँ चले तुम संन्यासी? क्षण भर थमकर मुझे बता दो, तुम्हें कहाँ को जाना है? मन्त्र फूँकनेवाला जग पर, अजब तुम्हारा बाना है॥ नंगे पैर चल पड़े पागल, काँटों की परवाह नहीं। कितनी दूर अभी जाना है? इधर विपिन है, राह नहीं॥ मुझे न जाना गंगासागर, मुझे न रामेश्वर, काशी। तीर्थराज चित्तौड़ देखने, को मेरी आँखें प्यासी॥ अपने अचल स्वतंत्र दुर्ग पर, सुनकर बैरी की बोली निकल पड़ी लेकर तलवारें, जहाँ जवानों की टोली, जहाँ आन पर माँ - बहनों की, जला जला पावन होली वीर - मंडली गर्वित स्वर से, जय माँ की ज

हे भारत के राम जगो

यह कविता हमारे फिल्म जगत के बहुत ही विशुद्ध एवं मंझे हुए कलाकार श्रीमान आशुतोष राणा जी द्वारा एक चैनल के साछात्कार के मध्य में सुनाया गया जो सभी भारतीयों के लिए अत्यंत प्रेरणा श्रोत है एवं वीर रस से ओत प्रोत है हे भारत के राम जगो, मैं तुम्हे जगाने आया हूँ, सौ धर्मों का धर्म एक, बलिदान बताने आया हूँ । सुनो हिमालय कैद हुआ है, दुश्मन की जंजीरों में आज बता दो कितना पानी, है भारत के वीरो में, खड़ी शत्रु की फौज द्वार पर, आज तुम्हे ललकार रही, सोये सिंह जगो भारत के, माता तुम्हे पुकार रही । रण की भेरी बज रही, उठो मोह निद्रा त्यागो, पहला शीष चढाने वाले, माँ के वीर पुत्र जागो। बलिदानों के वज्रदंड पर, देशभक्त की ध्वजा जगे, और रण के कंकण पहने है, वो राष्ट्रभक्त की भुजा जगे ।। अग्नि पंथ के पंथी जागो, शीष हथेली पर धरकर, जागो रक्त के भक्त लाडले, जागो सिर के सौदागर, खप्पर वाली काली जागे, जागे दुर्गा बर्बंडा, और रक्त बीज का रक्त चाटने, वाली जागे चामुंडा । नर मुंडो की माला वाला, जगे कपाली कैलाशी, रण की चंडी घर घर नाचे, मौत कहे प्यासी प्यासी, रावण का वध स्वयं करूँगा, कहने वाला राम जगे

रक्षा मंत्र

भाई को बहन येन बद्धो बलि रजा दानवेन्द्रो महाबल  तें तवाम अभि बध्नामी रक्ष माचल्माचल पत्नी   येन बद्धो बलि रजा दानवेन्द्रो महाबल  तें तवाम अनु बध्नामी रक्ष माचल्माचल गुरु को शिष्य  येन बद्धो बलि रजा दानवेन्द्रो महाबल  तें तवाम रक्ष बध्नामी रक्ष माचल्माचल

चरैवेति चरैवेति

चरैवेति-चरैवेति, यही तो मंत्र है अपना । नहीं रुकना, नहीं थकना, सतत चलना सतत चलना । यही तो मंत्र है अपना, शुभंकर मंत्र है अपना ॥ध्रु॥                                 हमारी प्रेरणा भास्कर, है जिनका रथ सतत चलता ।                                  युगों से कार्यरत है जो, सनातन है प्रबल ऊर्जा ।                                  गति मेरा धरम है जो, भ्रमण करना भ्रमण करना ।                                  यही तो मंत्र है अपना, शुभंकर मंत्र है अपना ॥१॥  हमारी प्रेरणा माधव, है जिनके मार्ग पर चलना । सभी हिन्दू सहोदर हैं, ये जन-जन को सभी कहना । स्मरण उनका करेंगे और, समय दे अधिक जीवन का । यही तो मंत्र है अपना, शुभंकर मंत्र है अपना ॥२॥                                     हमारी प्रेरणा भारत, है भूमि की करें पूजा ।                                      सुजल-सुफला सदा स्नेहा, यही तो रूप है उसका ।                                      जिएं माता के कारण हम, करें जीवन सफल अपना ।                                      यही तो मंत्र है अपना, शुभंकर मंत्र है अपना ॥३॥ 

बचपन की कविता ३ - चाँद का हठ

हठ कर बैठा चाँद एक दिन माता से यह बोला सिलवा दो माँ मुझे ऊन का मोटा एक झिंगोला | सन सन चलती हवा रात भर जाडे में मरता हूँ ठिठुर ठिठुर कर किसी तरह यात्रा पूरी करता हूँ | आसमान का सफर और यह मौसम है जाडे का न हो अगर तो ला दो मुझको कुर्ता ही भाडे का | बच्चे की सुन बात कहा माता ने अरे सलोने कुशल करे भगवान लगे मत तुझको जादू टोने | जाडे की तो बात ठीक है पर मै तो डरती हूँ एक नाप में कभी नहीं तुझको देखा करती हूँ | कभी एक अंगुल भर चौडा कभी एक फुट मोटा बडा किसी दिन हो जाता है और किसी दिन छोटा | घटता बढता रोज़ किसी दिन ऐसा भी करता है नहीं किसी की भी आँखों को दिखलाई पडता है | अब तू ही यह बता नाप तेरा किस रोज़ लिवायें सी दें एक झिंगोला जो हर रोज़ बदन में आयें | -   द्वारका प्रसाद माहेश्वरी                      

गंगा गीत

यह गंगा गीत जो पढ़ने और सुनाने में अति उत्तम लगता है और हमारी अपनी गंगा के प्रति समर्पण की भावना उत्पन्न करता है यह कल कल छल छल बहती क्या कहती गंगा धारा ? युग युग से बहता आता यह पुण्य प्रवाह हमारा    ।धृ । हम ईसके लघुतम जलकण बनते मिटते हेै क्षण क्षण अपना अस्तित्व मिटाकर तन मन धन करते अर्पण बढते जाने का शुभ प्रण प्राणों से हमको प्यारा युग युग से बहता आता यह पुण्य प्रवाह हमारा   ।१ । ईस धारा में घुल मिलकर वीरों की राख बही है ईस धारामें कितने ही ऋषियों ने शरण ग्रही है ईस धाराकी गोदि में, खेला ईतिहास हमारा  युग युग से बहता आता यह पुण्य प्रवाह हमारा   ।२ । यह अविरल तप का फल है यह राष्ट्रप्रवाह प्रबल है शुभ संस्कृति का परिचायक भारत मां का आंचल है हिंदुकी चिरजीवन मर्यादा धर्म सहारा  युग युग से बहता आता यह पुण्य प्रवाह हमारा   ।३ । क्या ईसको रोख सकेंगे मिटनेवाले मिट जायें कंकड पत्थर की हस्ती कया बाथा बनकर आये ढह जायेंगे गिरि पर्वत कांपे भूमंडल सारा  युग युग से बहता आता यह पुण्य प्रवाह हमारा  ।४ ।