मूस मोटाये लोढ़ा ना होए भावार्थ : बाप पदहै न जाने । पूत शंखै बजावै भावार्थ : चलै न चलै, मेडवै ओदारै भावार्थ : बाढै पूत पिता के धर्मे, खेती उपजै अपने कर्मे भावार्थ : पुत्र का विकास (किसी भी सन्दर्भ में ) पिता के द्वारा की गयी धर्म, कर्म और आर्थिक स्तिथि के आधार पर होता हा परन्तु, खेती केवल और केवल अपने किये गए कर्मों के आधार पर ही उपजती है जिसमें आपकी लगन और सहिष्णुता आधार होते हैं |