हठ कर बैठा चाँद एक दिन माता से यह बोला सिलवा दो माँ मुझे ऊन का मोटा एक झिंगोला | सन सन चलती हवा रात भर जाडे में मरता हूँ ठिठुर ठिठुर कर किसी तरह यात्रा पूरी करता हूँ | आसमान का सफर और यह मौसम है जाडे का न हो अगर तो ला दो मुझको कुर्ता ही भाडे का | बच्चे की सुन बात कहा माता ने अरे सलोने कुशल करे भगवान लगे मत तुझको जादू टोने | जाडे की तो बात ठीक है पर मै तो डरती हूँ एक नाप में कभी नहीं तुझको देखा करती हूँ | कभी एक अंगुल भर चौडा कभी एक फुट मोटा बडा किसी दिन हो जाता है और किसी दिन छोटा | घटता बढता रोज़ किसी दिन ऐसा भी करता है नहीं किसी की भी आँखों को दिखलाई पडता है | अब तू ही यह बता नाप तेरा किस रोज़ लिवायें सी दें एक झिंगोला जो हर रोज़ बदन में आयें | - द्वारका प्रसाद माहेश्वरी