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Showing posts from January, 2016

चरैवेति चरैवेति

चरैवेति-चरैवेति, यही तो मंत्र है अपना । नहीं रुकना, नहीं थकना, सतत चलना सतत चलना । यही तो मंत्र है अपना, शुभंकर मंत्र है अपना ॥ध्रु॥                                 हमारी प्रेरणा भास्कर, है जिनका रथ सतत चलता ।                                  युगों से कार्यरत है जो, सनातन है प्रबल ऊर्जा ।                                  गति मेरा धरम है जो, भ्रमण करना भ्रमण करना ।                                  यही तो मंत्र है अपना, शुभंकर मंत्र है अपना ॥१॥  हमारी प्रेरणा माधव, है जिनके मार्ग पर चलना । सभी हिन्दू सहोदर हैं, ये जन-जन को सभी कहना । स्मरण उनका करेंगे और, समय दे अधिक जीवन का । यही तो मंत्र है...