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Showing posts from August, 2015

बचपन की कविता ३ - चाँद का हठ

हठ कर बैठा चाँद एक दिन माता से यह बोला सिलवा दो माँ मुझे ऊन का मोटा एक झिंगोला | सन सन चलती हवा रात भर जाडे में मरता हूँ ठिठुर ठिठुर कर किसी तरह यात्रा पूरी करता हूँ | आसमान का सफर और यह मौसम है जाडे का न हो अगर तो ला दो मुझको कुर्ता ही भाडे का | बच्चे की सुन बात कहा माता ने अरे सलोने कुशल करे भगवान लगे मत तुझको जादू टोने | जाडे की तो बात ठीक है पर मै तो डरती हूँ एक नाप में कभी नहीं तुझको देखा करती हूँ | कभी एक अंगुल भर चौडा कभी एक फुट मोटा बडा किसी दिन हो जाता है और किसी दिन छोटा | घटता बढता रोज़ किसी दिन ऐसा भी करता है नहीं किसी की भी आँखों को दिखलाई पडता है | अब तू ही यह बता नाप तेरा किस रोज़ लिवायें सी दें एक झिंगोला जो हर रोज़ बदन में आयें | -   द्वारका प्रसाद माहेश्वरी                      

गंगा गीत

यह गंगा गीत जो पढ़ने और सुनाने में अति उत्तम लगता है और हमारी अपनी गंगा के प्रति समर्पण की भावना उत्पन्न करता है यह कल कल छल छल बहती क्या कहती गंगा धारा ? युग युग से बहता आता यह पुण्य प्रवाह हमारा    ।धृ । हम ईसके लघुतम जलकण बनते मिटते हेै क्षण क्षण अपना अस्तित्व मिटाकर तन मन धन करते अर्पण बढते जाने का शुभ प्रण प्राणों से हमको प्यारा युग युग से बहता आता यह पुण्य प्रवाह हमारा   ।१ । ईस धारा में घुल मिलकर वीरों की राख बही है ईस धारामें कितने ही ऋषियों ने शरण ग्रही है ईस धाराकी गोदि में, खेला ईतिहास हमारा  युग युग से बहता आता यह पुण्य प्रवाह हमारा   ।२ । यह अविरल तप का फल है यह राष्ट्रप्रवाह प्रबल है शुभ संस्कृति का परिचायक भारत मां का आंचल है हिंदुकी चिरजीवन मर्यादा धर्म सहारा  युग युग से बहता आता यह पुण्य प्रवाह हमारा   ।३ । क्या ईसको रोख सकेंगे मिटनेवाले मिट जायें कंकड पत्थर की हस्ती कया बाथा बनकर आये ढह जायेंगे गिरि पर्वत कांपे भूमंडल सारा  युग युग से बहता आता यह पुण्य प्रवाह हमारा  ।४ ।