Skip to main content

श्रुत लोकोक्तियाँ - २

जीवन यापन की परिस्थितियाँ (प्रमुखतः स्त्रियां)

बल राज बाप का,

उत्तम भर्तार,

कान-कोन पुत्र का,

निर्मम दामाद || 

 

भावार्थ:

जीवन में जो सबसे सफल और ताकतवर समय वह होता है जब वह अपने पिता की छत्रछाया में होती है (विवाह पूर्व) 

उत्तम समय वह होता है जब वह अपने भर्तार(पति) के साथ होती है

थोड़ा अच्छा व् थोड़ा ख़राब समय वह होता है जब वह अपने पुत्र के साथ रहती है 

और सबसे निर्मम और बुरा समय वह होता है जब उसे अपने दामाद के घर में जीवन यापन करना पड़े ||


Comments

Popular posts from this blog

बचपन की कविता २ - यदि होता किन्नर नरेश मैं

यदि होता किन्नर नरेश मैं, राजमहल में रहता| सोने का सिंहासन होता, सिर पर मुकुट चमकता|| बंदी जन गुण गाते रहते, दरवाजे पर मेरे | प्रतिदिन नौबत बजती रहती, संध्या और सवेरे || मेरे वन में सिह घूमते, मोर नाचते आँगन | मेरे बागों में कोयलिया, बरसाती मधु रस-कण || यदि होता किन्नर नरेश मैं, शाही वस्त्र पहनकर | हीरे, पन्ने, मोती माणिक, मणियों से सजधज कर || बाँध खडग तलवार सात घोड़ों के रथ पर चढ़ता | बड़े सवेरे ही किन्नर के राजमार्ग पर चलता || राज महल से धीमे धीमे आती देख सवारी | रूक जाते पथ, दर्शन करने प्रजा उमड़ती सारी || जय किन्नर नरेश की जय हो, के नारे लग जाते | हर्षित होकर मुझ पर सारे, लोग फूल बरसाते || सूरज के रथ सा मेरा रथ आगे बढ़ता जाता | बड़े गर्व से अपना वैभव, निरख-निरख सुख पाता || तब लगता मेरी ही हैं ये शीतल मंद हवाऍ | झरते हुए दूधिया झरने, इठलाती सरिताएँ || हिम से ढ़की हुई चाँदी सी, पर्वत की मालाएँ | फेन रहित सागर, उसकी लहरें करतीं क्रीड़ाएँ || दिवस सुनहरे, रात रूपहली ऊषा-साँझ की लाती | छन-छनकर पत्तों से बुनती हुई चाँदनी जाली ||                                          

घर से निकलते समय ॥

अचानक बचपन में माँ द्वारा कही एक लोकोक्ति याद आई। यह लोकोक्ति बताती है की घर से निकलने से पहले क्या करें की आपका काम सफल हो जाये । रवि को पान, सोम को दर्पण (दर्पण देख कर निकलो ), मंगल कीजे  गुड़  को   अर्पण, बुध को धनिया, बिफ़ै राइ, सुक कहे मोहे दही सुहाई, शनिचर कहे जो अदरक पाऊं तीनो लोक जीत घर जाऊं मैं ये नहीं कह रहा की ये सत्य है और मैं ये भी नहीं कहता की ये सब बकवास और ढकोसला है पर इतना कहना चाहता हूँ की इन कामों कर के घर से निकलने पर आत्मविश्वास बढ़ जाता है। यह मेरा व्यक्तिगत अनुभव है ॥ धन्यवाद्

हे भारत के राम जगो

यह कविता हमारे फिल्म जगत के बहुत ही विशुद्ध एवं मंझे हुए कलाकार श्रीमान आशुतोष राणा जी द्वारा एक चैनल के साछात्कार के मध्य में सुनाया गया जो सभी भारतीयों के लिए अत्यंत प्रेरणा श्रोत है एवं वीर रस से ओत प्रोत है हे भारत के राम जगो, मैं तुम्हे जगाने आया हूँ, सौ धर्मों का धर्म एक, बलिदान बताने आया हूँ । सुनो हिमालय कैद हुआ है, दुश्मन की जंजीरों में आज बता दो कितना पानी, है भारत के वीरो में, खड़ी शत्रु की फौज द्वार पर, आज तुम्हे ललकार रही, सोये सिंह जगो भारत के, माता तुम्हे पुकार रही । रण की भेरी बज रही, उठो मोह निद्रा त्यागो, पहला शीष चढाने वाले, माँ के वीर पुत्र जागो। बलिदानों के वज्रदंड पर, देशभक्त की ध्वजा जगे, और रण के कंकण पहने है, वो राष्ट्रभक्त की भुजा जगे ।। अग्नि पंथ के पंथी जागो, शीष हथेली पर धरकर, जागो रक्त के भक्त लाडले, जागो सिर के सौदागर, खप्पर वाली काली जागे, जागे दुर्गा बर्बंडा, और रक्त बीज का रक्त चाटने, वाली जागे चामुंडा । नर मुंडो की माला वाला, जगे कपाली कैलाशी, रण की चंडी घर घर नाचे, मौत कहे प्यासी प्यासी, रावण का वध स्वयं करूँगा, कहने वाला राम जगे